मौसम

एक बूँद गिरी मेरे बदन पर. तो लगा शायद बिल्डिंग के नीचे खड़ा हू तो किसी ने पानी डाला होगा. या फिर पेड़ पोधो को डालने वाला पानी गिरा होगा. पर उपर देख ही लेना चाहिए कुछ भरोसा नही है लोगो का कभी कभी मूह से भी पिचकारी उड़ाते है.

एकांत...Ekant

अकेले बैठे सुना है कभी खामोशी को? मन जब शांत होता है, अपनी सारी और देखलो फिर भी कोई नज़र नही आता, बस मैं और सिर्फ़ मैं.......... एकांत मैं रहेना और खुद से बाते करने मे एक अलग मज़ा है. अपने आप के लिए कुछ देर वक़्त निकालना.

pratibimb-mirror

प्रतिबिंब एक अक्स दिखता है दूसरी और , अपना सा लगता है कभी सपना सा लगता है , कभी उसी पर प्यार आता है तो कभी गुस्सा आता है, कभी घंटो बिता देते है , कभी एक जलक देख कर निकल जाता है, बस हर वक़्त अपनापन जताता है, अपनी ही जालक दिखा ता है वो.............वो है प्रतिबिंब....

नरीमन पॉइंट........Nariman point

नरीमन पॉइंट......... मुंबई मैं आई हुवी एक एसी जगह, जहा कई लोगो के कई अरमान जुड़े हुवे है. जी हा ,आज मैं उस जगह खड़ा हू जहा से एक कदम आगे मौत और एक कदम पीछे जिंदगी खड़ी है. नरीमन पॉइंट........

God - Great Organiser and Destroyer

भगवान एक मज़ा देखा है आपने बड़े मंदिरो मैं हमेशा क़Q रहेगा..अरे अब भगवान को मिलने के लिए भी लाइन लगानी पड़ती है. जैसे दरदी बिना आपॉइंटमेंट डॉक्टर को नही मिल सकते वैसे जिंदगी के दर्दीओ को लाइन लगानी पड़ती है. डॉक्टर एक बीमार अनेक. वहा भी पैसे लेते है ओर यहा पैसे चढ़ते है..संभाल लेना भगवान थोड़ा टेन्षन चालू है. उन्हे खुश करने के लिए फूल भी चढ़ाते है विथ मिठाई. इतना गर्लफ्रेंड के लिए करेंगे तो कम से कम वो दिन प्रसाद ज़रूर मिल जाएगा.

Friday, December 9, 2011

मंजिल destination



मंजिल
हा हम सबको एक मंजिल की तलाश होती है हर वक़्त , जो हमारे लिए बनी है. जो हम ने निर्धारित की है अपने लिए. एक दिन उस मुकाम पर पहुचना है जहा से हमे अपने आप को देख ने मैं दिलचस्पी हो . लोग कहे "वाह , ये हुवी न बात ". अपने नक़्शे कदम पर चलने वाले भी हो. हम भी किसी के लिए रोल-मोडल बने. चलते चलते हम कहा तक आगये आज हमे पता भी नहीं . क्या सोचा था और कहा तक पहुचे उसका जरा थोडा टाइम निकल के आज हिसाब कर ले.
बचपन मैं बड़ी बड़ी इमारते देख ते थे लोगो को यहाँ से वह भाग ता देख ते थे . तब हमारे दिल मैं एक सवाल आता था. ये लोग इतना भाग क्यों रहे है? घर ही तो जाना है . फिर इतनी भाग दोड़ क्यों ? आज जब हम उनके पैरो मैं पैर डाल के ऑफिस जाने लगे तब पता चलता है, भाई भागना तो जिंदगी है और जहा पहोचना है वो मंजिल है. एक घर और दूसरा ऑफिस . बस ये दो नो के बिच जिंदगी पिस सी गई है. बोलो है ना? हम ने बचपन मैं ये करने की ठानी थी वो करने की ठानी थी, पर आज हम सिर्फ एक रोबर्ट की तरह फिक्स प्रोग्राम बन गए है . अरे बहार जाना भी अब एक प्रोग्राम जैसा ही होगया है , आज सन्डे है तो बहार घूम आते है . जहा जायेंगे वो पहेले से फिक्स होता है . फिर मजा जिंदगी का कहा है? हमने अपनी मंजील बस इन्ही लम्हों के लिए तै की थी ?
खुशियों को पाने के लिए वक़्त नहीं होता ये सच है पर हमारे पास वक़्त ही नहीं है खुशिया महेसोस करने के लिए ये कितने जानते है. कभी घर से निकलते है आइसे ही बिना मंजिल और बिना किसी तयारी के मजा आएगा वो भी दुगना गेरेंटी है . अपने फॅमिली को लेके निकल जाओ कही अन कही जगह पर कोई भी फिल्म देखने, या फिर किसी मंदिर मैं , सुबह की एक लम्बी लेजी सैर भी करनि चाहिए अगर आप रोज़ नहीं जाते तो. कभी उही रेअद्य हो कर एक उनकाही स्वीट डिश खाने या किसी फमौस जगह की चाट खाने जो घर से थोड़ी दूर हो और जहा जाना आना बहोत कम होता हो. मंजिल वो चीज़ नहीं है जिसे हमे खोज ते हुवे जाना है मंजिल वो चीज़ है जहा हमे तस्सली मिल जाये अपने आप को महेसुस करने की . अपने आप मैं संतोष पाने की . अपने हर एक पल को जीने की . जहा जाओगे वही आप को अपनी मंजिल मिल जाएगी. फिर जिंदगी मै जीने के चार दिन हो, या दो दिन. हमे हर पल जीने का मजा आएगा. लोग कहेते है, "सारी जिंदगी गुजर गई मंजिल की तलाश मैं". पर उन्हें क्या पता है मंजिल तो अपने खुद के कदमो से जुडी है. हर कदम पर एक नई दुनिया है हर कदम पर एक नई मंजिल.

जहा भी कदम ले चले वही नई मंजिल हम बनायेंगे
जिंदगी मैं गम हो या ख़ुशी हम हर पल जीते ही चले जायेंगे....
यहाँ वहा ढूंढे क्या ?
जब खुद ही मैं है तेरी मंजिल को पाने का रास्ता