Sunday, September 11, 2011

टोय स्टोरी , खिलोने





टोय  स्टोरी , खिलोने

याद है हम बचपन मैं जिस चीज़ के साथ खेला करते थे? जो सब से ज्यादा हमे अज़ीज़ थे , दोस्त होना हो वो हमेशा हमारे साथ रहेते थे. जि हा सुख हो या दुःख हो हमारे सिने से लिपटकर हमारी ही बाते सुना करते थे. वो थे हमारे खिलोने. ये टोपिक पर लिखने की प्रेरणा मुझे टॉय स्टोरी फिल्म देख कर मिली. कभी मोका मिले तो  देख लेना. बहोत अछी फिल्म है अपने मालिक और अपने दोस्तों से लगाव के बारे मैं. वो जिन्दा होके बोलने लगते है . मुझे भी याद है की मैं भी एक छोटा सा कुत्ता और ही-मेंन को लेके बड़ा ही रोमांचक अनुभव ता था. वो मेरे अकेले पन के साथी थे. 
   आप भी अपने खिलोनो से बहोत ही नजदीक होंगे. वो गाड़ी चलाना, उनके साथ बैठ के खाना खाना ,  छोटी सी बातो पे उनसे रूठ जाना ,या उनको ही लेके बहार जाना. एक बार मेरे घर पर कुछ महेमान आये थे और उसमें मेरा एक कॉम्पिटिटर था. मतलब की मेरे जैसा छोटा बच्चा भी था. फिर क्या था मेरे खिलोनो के साथ उसने खेल ना  शुरू किया अईसे  से वैसे कैसे भी वो खेलता था . मैं चुप रहा कुछ  देर पर कब तक ? वही से अपने पन और पराये पन की समज आने लगी. अपनी चीजों को कोई छेड दे तो बुरा लगता है वो समज आगया. पर आज भी दुसरो की चीज़े इस्तमाल करने मैं वो ख्याल जरा कम आता है. हमेशा अपने खिलोनो को बाजु मैं लेके सोता था. मोम या पापा उसे रख देने को कहे तो भी रात को लाइट बंद करने के बाद उसे वापस अपने पास लेके आता और अपनी बाजु  मैं सुला देता था. पर सुबह हमेशा वो मुझसे पहेले उठा होता था और शो-केस  के एके कॉर्नर मैं बैठा रहेता  था . अगर सच कहे तो सबसे पहेला अपना कोई दोस्त बना तो वो था अपना खिलौना . ना बोलके  अपने साथ हमेशा रहेके अपनी चपड  चपड  सारी  बाते शांति से सुन ना और  हमेशा अपने हा मैं हा मिलाना . क्यों की उसकी मुंडी / गर्दन हम ही हिलाते थे . नेवर से नो टू  अस . जहा जहा मैं रहूँगा वहा वो होगा ही.
   जीवन के बड़े खूबसूरत मोड़ पर वो मिला था. हम लोगो को पहेचान रहे होते है ये काका ये मामा ये दीदी पर इस की पहेचान कोई देता नहीं था इसलिए हम ने उसे अपना बनाया एक दोस्त की तरह. वही से हमने जाना अंजान लो गो से कैसे दोस्ती  बढ़ाना और करना होता है . आज  कुछ  बच्चो को देखते है तो  उनके लिए खिलोने यानि मोबाइल फ़ोन और कंप्यूटर होगये है . क्या ये लोग वो बोन्डिंग बना पाएंगे जो हम लोगो ने बनाई थी. अपने खिलोने आज भी हमे याद करते है किसी कोने मैं आज भी वो खड़े है आज भी अगर आप उसकी और स्मिले दोगे तो वो जरुर अपनी और वही मुस्कान डालेंगे. एकाद खिलौना धुंड   कर देखिये शायद आपके आस पास मिल जाये. और वो डोल जिस के बाल बना के बिगाड़ के हम लोग खेलते थे. आज दुसरो बचो को देखते है तो हम भी उनेके साथ अपनी एक अलग ही स्टोरी चालू कर देते है . किसी बच्चे के लिए जो खिलौना करता है शायद उसका उपकार हम नहीं भूल सकते . खाली समय मैं उसके साथ करने वाली उसकी किलबिल बाते उसके इमोशन सिर्फ वही खिलौना जान सकता है.  माँ - पापा को या अपने आप को कभी दूर रहेना पड़ता है बचो से तो सब से पहेले वो बचो के हाथ मैं खिलौना थमा देते है बस खेलो उसके साथ . कोई बचचो को कई सारे खिलोने मिलते है तो कई को एक या दो पैर जो भी हो हमे बड़े आचे लगते थे . 

आज हम इतने बड़े होगये है की याद ही नहीं कभी हमारे जीवन के साथ ये जुड़े हुवे थे . और हमने उन्हें थैंक्स भी नहीं कहा आज तक . हो सके तो अपनी जिंदगी का खुच वक़्त उसके लिए निकाल के उसे कहे देना और किसी के घर अगर कोई बच्चा हो तो एक अपना खास  खिलौना खरीद के देदेना. 

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