मंजिल
हा हम सबको एक मंजिल की तलाश होती है हर वक़्त , जो हमारे लिए बनी है. जो हम ने निर्धारित की है अपने लिए. एक दिन उस मुकाम पर पहुचना है जहा से हमे अपने आप को देख ने मैं दिलचस्पी हो . लोग कहे "वाह , ये हुवी न बात ". अपने नक़्शे कदम पर चलने वाले भी हो. हम भी किसी के लिए रोल-मोडल बने. चलते चलते हम कहा तक आगये आज हमे पता भी नहीं . क्या सोचा था और कहा तक पहुचे उसका जरा थोडा टाइम निकल के आज हिसाब कर ले.
बचपन मैं बड़ी बड़ी इमारते देख ते थे लोगो को यहाँ से वह भाग ता देख ते थे . तब हमारे दिल मैं एक सवाल आता था. ये लोग इतना भाग क्यों रहे है? घर ही तो जाना है . फिर इतनी भाग दोड़ क्यों ? आज जब हम उनके पैरो मैं पैर डाल के ऑफिस जाने लगे तब पता चलता है, भाई भागना तो जिंदगी है और जहा पहोचना है वो मंजिल है. एक घर और दूसरा ऑफिस . बस ये दो नो के बिच जिंदगी पिस सी गई है. बोलो है ना? हम ने बचपन मैं ये करने की ठानी थी वो करने की ठानी थी, पर आज हम सिर्फ एक रोबर्ट की तरह फिक्स प्रोग्राम बन गए है . अरे बहार जाना भी अब एक प्रोग्राम जैसा ही होगया है , आज सन्डे है तो बहार घूम आते है . जहा जायेंगे वो पहेले से फिक्स होता है . फिर मजा जिंदगी का कहा है? हमने अपनी मंजील बस इन्ही लम्हों के लिए तै की थी ?
खुशियों को पाने के लिए वक़्त नहीं होता ये सच है पर हमारे पास वक़्त ही नहीं है खुशिया महेसोस करने के लिए ये कितने जानते है. कभी घर से निकलते है आइसे ही बिना मंजिल और बिना किसी तयारी के मजा आएगा वो भी दुगना गेरेंटी है . अपने फॅमिली को लेके निकल जाओ कही अन कही जगह पर कोई भी फिल्म देखने, या फिर किसी मंदिर मैं , सुबह की एक लम्बी लेजी सैर भी करनि चाहिए अगर आप रोज़ नहीं जाते तो. कभी उही रेअद्य हो कर एक उनकाही स्वीट डिश खाने या किसी फमौस जगह की चाट खाने जो घर से थोड़ी दूर हो और जहा जाना आना बहोत कम होता हो. मंजिल वो चीज़ नहीं है जिसे हमे खोज ते हुवे जाना है मंजिल वो चीज़ है जहा हमे तस्सली मिल जाये अपने आप को महेसुस करने की . अपने आप मैं संतोष पाने की . अपने हर एक पल को जीने की . जहा जाओगे वही आप को अपनी मंजिल मिल जाएगी. फिर जिंदगी मै जीने के चार दिन हो, या दो दिन. हमे हर पल जीने का मजा आएगा. लोग कहेते है, "सारी जिंदगी गुजर गई मंजिल की तलाश मैं". पर उन्हें क्या पता है मंजिल तो अपने खुद के कदमो से जुडी है. हर कदम पर एक नई दुनिया है हर कदम पर एक नई मंजिल.
जहा भी कदम ले चले वही नई मंजिल हम बनायेंगे
जिंदगी मैं गम हो या ख़ुशी हम हर पल जीते ही चले जायेंगे....
यहाँ वहा ढूंढे क्या ?
जब खुद ही मैं है तेरी मंजिल को पाने का रास्ता
1 comments:
आजकल की दुनिया मे अपना और अपने घरवालोन्का पेट भरना ही पेह्ली मंजील बन गयी है...घरवालोनके लिये भी समय नाही निकाल पाते...खुद के लिये तो भूल जाना ही बेहतर है.
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