डायमंड कोमिक्स का नाम तो सुनाही होगा। अगर नहीं, तो चाचा चौधरी का
नाम ? जिसके कार्टूनिस्ट और उत्पन करता थे “मिस्टर प्राण”। जिनका स्वर्गवास लास्ट बुधवार को हुवा। उन्हे मेरी तरफ से एक चोटी सी श्रद्धांजलि।
मेरे बचपन के उन खूबसूरत लम्हो मे इनके कॉमिक्स ने भी मेरा खूब साथ निभाया था। जभी मैं अपने मामा के घर कांदिवली जाता तो दो नो कंदर्पमामा और मनीषमामा से मुजे खूब सारे कॉमिक्स पढ़ने को मिलते थे। उन मे से सब से जादा पढ़ा था मैंने चाचा चौधरी। शायद उस वजह से मेरे अंदर का कॉमिक पात्र भी जागृत है। छोटी छोटी सामाजिक और रोज़ बरोज की बातो मैं से वो हास्य की धारा ए अपने कॉमिक्स मे प्रदर्शित करते थे। वहा साई बाग मे मेरे हम उम्र के दोस्त और रिश्ते दार थे तो जाना अछा लगता था, पर अब तो इन कोमिक्स के वजेसे और आदत सी पद गई थी। वो आदत मेरी घर तक आ पाहुची। और ठाणे मे भी मैं इन कॉमिक्स के लिए दुकानों मे भटक ने लगा था। कुछ पैसे पापा मम्मी से मांग के तो कुछ अपनी बचत से जमा करके कॉमिक्स खरीद लता था। शुरू मे वहा कोई मेरा दोस्त नहीं था सो टाईम पास करने के लिए इस कॉमिक्स से बढ़िया दोस्त हमदर्द और फिलोसोफ़र और कोई न था।
मेरा जिंदगी का बहोत सारा वक़्त इन कॉमिक्स ने सावरा है। घर मे जब दुपहर को मम्मी सो जाती तो मैं कीचेन मे अलमारी के आईने के सामने जाके कभी चाचा चौधरी बनता तो कभी साबू बनके कई अदृश्य गुंडो की जम के धुलाई करता। वो भी क्या दिन थे। फिर हम बड़े होते गए कॉमिक्स का जमाना कम्प्युटर लेने लगा। स्कूल और क्लासिस के चक्कर मैं दुनिया बदलने लगी। सब अपने कामो मैं बिज़ि होने लगे और आज बच्चों को मोबाइल के आलवा कोई चीज नहीं दिखती।
मेरी जिंदगी मे आप का स्थान हमेशा दिल के एक कोने मे महेफुस रहेगा। तहे दिल से शुक्रिया आपका। बुजुर्ग कहेते है की स्वर्ग मे एक अलग दुनिया है तो उम्मीद करता हु स्वर्ग मे भी आप अपने कॉमिक्स की सिरीज़ निकाल कर वहा के लोगो मे जीने के लिए नए प्राण भर देंगे।
धन्यवाद
जिगर
नाम ? जिसके कार्टूनिस्ट और उत्पन करता थे “मिस्टर प्राण”। जिनका स्वर्गवास लास्ट बुधवार को हुवा। उन्हे मेरी तरफ से एक चोटी सी श्रद्धांजलि।
मेरे बचपन के उन खूबसूरत लम्हो मे इनके कॉमिक्स ने भी मेरा खूब साथ निभाया था। जभी मैं अपने मामा के घर कांदिवली जाता तो दो नो कंदर्पमामा और मनीषमामा से मुजे खूब सारे कॉमिक्स पढ़ने को मिलते थे। उन मे से सब से जादा पढ़ा था मैंने चाचा चौधरी। शायद उस वजह से मेरे अंदर का कॉमिक पात्र भी जागृत है। छोटी छोटी सामाजिक और रोज़ बरोज की बातो मैं से वो हास्य की धारा ए अपने कॉमिक्स मे प्रदर्शित करते थे। वहा साई बाग मे मेरे हम उम्र के दोस्त और रिश्ते दार थे तो जाना अछा लगता था, पर अब तो इन कोमिक्स के वजेसे और आदत सी पद गई थी। वो आदत मेरी घर तक आ पाहुची। और ठाणे मे भी मैं इन कॉमिक्स के लिए दुकानों मे भटक ने लगा था। कुछ पैसे पापा मम्मी से मांग के तो कुछ अपनी बचत से जमा करके कॉमिक्स खरीद लता था। शुरू मे वहा कोई मेरा दोस्त नहीं था सो टाईम पास करने के लिए इस कॉमिक्स से बढ़िया दोस्त हमदर्द और फिलोसोफ़र और कोई न था।
मेरा जिंदगी का बहोत सारा वक़्त इन कॉमिक्स ने सावरा है। घर मे जब दुपहर को मम्मी सो जाती तो मैं कीचेन मे अलमारी के आईने के सामने जाके कभी चाचा चौधरी बनता तो कभी साबू बनके कई अदृश्य गुंडो की जम के धुलाई करता। वो भी क्या दिन थे। फिर हम बड़े होते गए कॉमिक्स का जमाना कम्प्युटर लेने लगा। स्कूल और क्लासिस के चक्कर मैं दुनिया बदलने लगी। सब अपने कामो मैं बिज़ि होने लगे और आज बच्चों को मोबाइल के आलवा कोई चीज नहीं दिखती।
मेरी जिंदगी मे आप का स्थान हमेशा दिल के एक कोने मे महेफुस रहेगा। तहे दिल से शुक्रिया आपका। बुजुर्ग कहेते है की स्वर्ग मे एक अलग दुनिया है तो उम्मीद करता हु स्वर्ग मे भी आप अपने कॉमिक्स की सिरीज़ निकाल कर वहा के लोगो मे जीने के लिए नए प्राण भर देंगे।
धन्यवाद
जिगर
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