याद हे , छोटी काग़ज़ की कश्ती बना के पानी मैं छोड़ा करते थे...आज खुद एक जहाज़ बन गये है और दुनिया के समंदर मैं नज़ाने कहा तक जाचुके है....वापस आना तो दूर कहा से जहाज़ शुरू किया था वो भी पता नही है. लोग मिलते गये मंज़िले बदलती रही..कुछ इस कदम से कदम मिलाक चले तो कूछ अपने रास्ते अलग से चले गये...पर हर कोई कुछ ना कुछ सिखाता गया| बहोत कम वक़्त दे पाते है हम अपने लोगो को क्यू की लोग भी बढ़ गये है उमर के साथ साथ. पहेले था बस एक दोस्त अब अनेक दोस्त बन गये है| सो हो सके तो उतना नही पर थोड़ा वक़्त निकालो अपने खोए हुवे दोस्त को मिलनेके लिए, जिस तरह हर साल बारिश आती है अपने धरती के दोस्तो को मिलने.
सो अब हम भी बारिश की तरह एक बार ज़रूर मिलेंगे.......
क्यू ना रहे हम अलग अलग ,
पर दिल तो हमारा एक ही है,
पुकार लेना जहा चाहो हमे
यहा नही वाहा नही उसी मोड़ पर मिलेंगे
जहा से जुदा हुवे थे कभी......
जिगर