प्रतिबिंब
एक अक्स दिखता है दूसरी और , अपना सा लगता है कभी सपना सा लगता है , कभी उसी पर प्यार आता है तो कभी गुस्सा आता है, कभी घंटो बिता देते है , कभी एक जलक देख कर निकल जाता है, बस हर वक़्त अपनापन जताता है, अपनी ही जालक दिखा ता है वो.............वो है प्रतिबिंब....
दर्पण की भी अजीब दास्तान है हमारा चहेरा ,रंग, रूप खूप पहेचानता है. जो हम करे वो करता है. मुस्कुराए हम तो वो मुस्कुराता है. रो दे तो वो भी रो देता है. हमे अपनी ही हक़ीकत से मिला देता है...अक्सर कहेते है ना के तस्वीरे जुठ बोल सकती है पर आईना नही. आईना तो हमारी असली पहेचान है. हम जो है वही दिखा ता है. लड़कियो के लिए तो उनकी खूबसूरती का दूसरा नाम है. अगर किसी लड़की को मस्त सताना हो तो उसे साडी , चूड़िया , साज शिंगार की सारी चीज़े दे दो और फिर उसे बिना आईनेवाले एक कमरे मे छोड़ दो......बस फिर क्या है ...
दर्पण मैं जाकना हर किसी को अछा लगता है . अपना प्रतिबींब कैसा लगता है सब को उसकी उत्सुकता होती है. फिर वो काला हो या गोरा, छोटा हो या मोटा, लंबा हो या बौना. रेफलेक्शन देखने के लिए बस एक काच की दीवार ही काफ़ी है. अरे कई बार तो लोग गाड़ी के दरवाजे के शीशो मैं ही अपने आपको देख कर सवार लेते है. आईना मैं देख अपने आप को सवारना काफ़ी पुरानी प्रथा है. और लड़कियो से उनका नाता काफ़ी पूराना है. जबही किसी खूबसूरती की बात हो और उन्हे दिलकी बात कहेनी हो तो बस, आईने के सामने लेजाके कहे दो, दुनिया मैं इस से हंसिन लड़की मैने नही देखी . शर्मा ना तो पका है पर आपकी बाहो मैं उनका सिमट जाना और भी अछा लगेगा जब आप खुद भी देख सकोगे आईने मे की सिर्फ़ कहेने के लिए नही काहेते लोग "दो जिस्म एक जान है हम". किसी को तिरछी नज़रो से देखने के लिए भी ये काम आता है. तो किसी के दूर रहेके भी पास रहेने का ज़रिया बन जाता है. भीड़ मे भी आपकी नज़रे बनके उनके ज़रिए दूसरो का दीदार करा देता है. जब बाते ख़तम हो जाई तो इशारो के लिए ज़रिया बन जाता है. तुम जो कहोगे वो तुमसे वही कहेता है. जबही खामोश रहोगे वो भी खामोश रहेता है. अपनी तस्वीर अपने को ही बता ता है हम क्या है वो हुमि को सिखाता है. जल की तरह पवित्र है वो. आग की तरह ज्वलनशील है वो. पहाड़ की तरह सख़्त है वो. ज़मीन की तरह निर्मल है वो. जो भी है वो बहोत सरल और सीधा है वो. हुमारी दूसरी पहेचान है वो. अपना ही अक्स दिखत आपना प्रतिबिंब है वो.
जबही मुजे वक़्त मिलता है
मैं आईने के सामने जाता हू
अक्सर उस्से बाते करता हू
और खूब मुस्कुराता इतरता हू .
अपने ही आप से रोज मिल आता हू
जिसे मैं अपनी परछाई मानता हू
अपनी ही नज़रो से उसकी नज़रे उतार ता हू.
दिन मैं लोगो से कम प्रतिबिंब से जादा मिल आता हू.
मे और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है दर्पण से.....
जिगर पंड्या.........
the mirror boy.
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