कॉलेज की घंटी बजी जैसे कानो से सीधी दिल को दस्तक दे गई। कोई आने को हे ये ख़बर दे गई। ओह्ह्ह आखिर 12 बजे । कॉलेज के क्लास रूम से भीड़ निकली लेक्चर खत्म हुवा। सीढ़ी यो पर भीड़ बढ़ने लगी लोगो के चहेरे दिखने लगे पर ....पर वो एक चहेरा नहीं दिख रहा था। वो कहा गई? कितनी आलसी हे जल्दी आती नहीं, या आई ही नहीं? कुछ किलबिल करती आवाजे आती थी उनमे उसकी आवाज हे की नहीं? कान जैसे रडार की तरह ग़ुम रहे थे। कुछ के सिर्फ बाल दिख रहे थे तो कुछ की फिगर , कुछ साइड के चहेरे तो किसी की सिर्फ ड्रेस। उफ्फ्फ ये क्या पर इन सब में वो नहीं नज़र आ रही। ऊपर जा के देख आउ? क्या सहेली मिली होगी तो बैठ गई होगी गाउँ भर की बाते लेकर। निचे आकर बाते नहीं कर सकती क्या? खयालो के पुलाव पकाने के बिच में ऊपर से जोर से गिरने की आवाज़ आई, शोर बढ़ गया हँसी की सिस्कारिया निकल रही थी। साला अपनी वाली तो नहीं गिरी ना? अगर वो होगी तो सब के जबड़े तोड़ दूंगा , "चल ऊपर चल"। दो दो सीढ़िया चढ़ कर पैर तो जैसे बुलेट की तरह भागने लगे। बस ऊपर जाके देखा ओह्ह्ह
दो लडकिया गिरी थी। ध्यान से नज़दीक गया । आँखे उल्लू की तरह चौड़ी होगई। पर जुल्फे इतनी चहेरे पर छाई थी की समज नहीं आ रहा था। तभी एक हाथ बढ़ा उनकी तरफ , पिंक चूड़ियों की खनखनाहट हुवी। हाथ को देख कर नज़रे थम गई। वो चूड़ियों से लेकर उनके चहेरे तक का नज़रो का सफ़र जैसे हिमालय की राहो में चलते हुवे बर्फ की पहाड़ी को देखने जैसा आनंद। वो मुस्कुराता गुलाबी चहेरा उसपर ये गुलाबी ड्रेस, उसपर गुलाबी गाल, उसपर गुलाबी होठ, उसपर गुलाबी बिंदी। हायय य य.... मरे तो किस चीज़ पर मरे..... गुलाबी माहोल बना रही थी उनकी हँसी। लडकिया उठी , हँसी और सारी एकदम से चल दी......
मैं वही खड़ा रहा ,देखता रहा जाते उनको। गई गई और आँखों से ओजन हो गई
मै वही खड़ा ग़ुम सुम , ग़ुप चुप.... दोस्तों की आवाज़े आइ "भाई अब गेट को लॉक लगाने का काम तुजे दिया हे क्या? घर नहीं जाना? बारिश की छिंटे शुरू हो गई हे …......."