मौसम

एक बूँद गिरी मेरे बदन पर. तो लगा शायद बिल्डिंग के नीचे खड़ा हू तो किसी ने पानी डाला होगा. या फिर पेड़ पोधो को डालने वाला पानी गिरा होगा. पर उपर देख ही लेना चाहिए कुछ भरोसा नही है लोगो का कभी कभी मूह से भी पिचकारी उड़ाते है.

एकांत...Ekant

अकेले बैठे सुना है कभी खामोशी को? मन जब शांत होता है, अपनी सारी और देखलो फिर भी कोई नज़र नही आता, बस मैं और सिर्फ़ मैं.......... एकांत मैं रहेना और खुद से बाते करने मे एक अलग मज़ा है. अपने आप के लिए कुछ देर वक़्त निकालना.

pratibimb-mirror

प्रतिबिंब एक अक्स दिखता है दूसरी और , अपना सा लगता है कभी सपना सा लगता है , कभी उसी पर प्यार आता है तो कभी गुस्सा आता है, कभी घंटो बिता देते है , कभी एक जलक देख कर निकल जाता है, बस हर वक़्त अपनापन जताता है, अपनी ही जालक दिखा ता है वो.............वो है प्रतिबिंब....

नरीमन पॉइंट........Nariman point

नरीमन पॉइंट......... मुंबई मैं आई हुवी एक एसी जगह, जहा कई लोगो के कई अरमान जुड़े हुवे है. जी हा ,आज मैं उस जगह खड़ा हू जहा से एक कदम आगे मौत और एक कदम पीछे जिंदगी खड़ी है. नरीमन पॉइंट........

God - Great Organiser and Destroyer

भगवान एक मज़ा देखा है आपने बड़े मंदिरो मैं हमेशा क़Q रहेगा..अरे अब भगवान को मिलने के लिए भी लाइन लगानी पड़ती है. जैसे दरदी बिना आपॉइंटमेंट डॉक्टर को नही मिल सकते वैसे जिंदगी के दर्दीओ को लाइन लगानी पड़ती है. डॉक्टर एक बीमार अनेक. वहा भी पैसे लेते है ओर यहा पैसे चढ़ते है..संभाल लेना भगवान थोड़ा टेन्षन चालू है. उन्हे खुश करने के लिए फूल भी चढ़ाते है विथ मिठाई. इतना गर्लफ्रेंड के लिए करेंगे तो कम से कम वो दिन प्रसाद ज़रूर मिल जाएगा.

Thursday, June 21, 2012

आजा रे बारिश .....come monsoon






आजा रे बारिश .....जब कभी बारिश आने वाली होती है तब मेरे दिल मैं ख्याल आता है........कैसी होगी बारिश की वो पहेली बुँदे धरती के लिए ..कितना इंतजार करने के बाद कोई हमारे दर पर दस्तक देने आया है. इंतजार तो था पिछले कई महीनो से पर आते आते कितनी देर लगा देता है. जैसे किसी के इंतजार मैं हम जब खड़े हो तो एक सेकंड भी एक घंटो के बराबर लगता है . पर जैसे ही वो मिल जाये तो एक घंटा भी चंद सेकंडो की तरह गुज़र जाता है. वैसे ही बारिश की कुछ बुँदे गिरी और चली गई . अब के बारिश फिर से कब जमके बरसेगी उसके आस मैं और उसकी तलाश मैं अपने मन मैं एक लम्बी सी चाह देकर चली गई.

स्कूल चालू होगी, भागम दौड़ी फिर से शुरू होगी. बच्चो की शोपिंग से ले के घर के छत की मरम्मत का समय आगया. ताकि बच्चे तो बच्चे छत भी टपक कर सारे घर को गिला न करदे . बच्चो को हम रेनकोट पहेनाते है पर फिर भी वो गिले हो कर आजाते है. हम सोचते होंगे आज कल के रैनकोट मैं गड़बड़ है, पर ऐसा नहीं है. मैंने कई बचो को देखा है अपने रैनकोट की जेब मैं पानी भरते है और बटन खुले रखते है .क्र्रिश की तरह जम्प करते है उर धुदुम पानी मैं छलांग लगाते है. अब बोलो इतना करने के बाद कोई गिला होने से बच सकता है. हम भी तो करते है मजे. बस हम छाते के साथ होते है फिर भी गिले होजाते है . क्यों की हवा यहाँ वह कहा से भी बारिश का रुख मोड़ देती है .और बारिश भी ऑफिस जाने के टाइम और घर वापस आने के टाइम जोर लगा कर गिरती है. जैसे कहे रही हो बच के कहा जायेगा हमसे. और गुस्सा तब आता है जब कही बहार गए हो प्लान बनाके की आज बारिश मैं भीगेंगे ...तब करलो बात बारिश का नमो निशान नहीं. जैसे हम से आँख मिचोली खेल रहा हो. बारिश मैं भीग कर छींके बड़ी जोरो से आने लगती है ..हान्नंक चीईयीयी यी यी यी ..लो नाम लेते ही आगई. गरम गरम आग के उपर हाथ को शेकना, चाय की चुस्सकी या लगाना, फिर भजी के लिए घर मे या तो ऑफिस मैं ऑर्डर करना.तभी तो मजा है बरसात का
तो फिर मैं एक ऑर्डर कर के आता हु तब तक शायद बारिश आजाये या फिर गरम गरम घर वालो के बोल सुन ने मिलजाए .बारिश की याद मैं और इंतजार मैं एक अनोखा खयाल पेश है





...तू आये न आये बस तेरी याद जरुर चली आती है
...दे मोका खिदमद का एक बार जमी पर आकर
... बाहों मैं भर लेंगे तुजे जान समज कर .....
...फिर देखेंगे कैसे जाओ गे मेरी पनाहों मै आकर

जिगर पंड्या

Friday, December 9, 2011

मंजिल destination



मंजिल
हा हम सबको एक मंजिल की तलाश होती है हर वक़्त , जो हमारे लिए बनी है. जो हम ने निर्धारित की है अपने लिए. एक दिन उस मुकाम पर पहुचना है जहा से हमे अपने आप को देख ने मैं दिलचस्पी हो . लोग कहे "वाह , ये हुवी न बात ". अपने नक़्शे कदम पर चलने वाले भी हो. हम भी किसी के लिए रोल-मोडल बने. चलते चलते हम कहा तक आगये आज हमे पता भी नहीं . क्या सोचा था और कहा तक पहुचे उसका जरा थोडा टाइम निकल के आज हिसाब कर ले.
बचपन मैं बड़ी बड़ी इमारते देख ते थे लोगो को यहाँ से वह भाग ता देख ते थे . तब हमारे दिल मैं एक सवाल आता था. ये लोग इतना भाग क्यों रहे है? घर ही तो जाना है . फिर इतनी भाग दोड़ क्यों ? आज जब हम उनके पैरो मैं पैर डाल के ऑफिस जाने लगे तब पता चलता है, भाई भागना तो जिंदगी है और जहा पहोचना है वो मंजिल है. एक घर और दूसरा ऑफिस . बस ये दो नो के बिच जिंदगी पिस सी गई है. बोलो है ना? हम ने बचपन मैं ये करने की ठानी थी वो करने की ठानी थी, पर आज हम सिर्फ एक रोबर्ट की तरह फिक्स प्रोग्राम बन गए है . अरे बहार जाना भी अब एक प्रोग्राम जैसा ही होगया है , आज सन्डे है तो बहार घूम आते है . जहा जायेंगे वो पहेले से फिक्स होता है . फिर मजा जिंदगी का कहा है? हमने अपनी मंजील बस इन्ही लम्हों के लिए तै की थी ?
खुशियों को पाने के लिए वक़्त नहीं होता ये सच है पर हमारे पास वक़्त ही नहीं है खुशिया महेसोस करने के लिए ये कितने जानते है. कभी घर से निकलते है आइसे ही बिना मंजिल और बिना किसी तयारी के मजा आएगा वो भी दुगना गेरेंटी है . अपने फॅमिली को लेके निकल जाओ कही अन कही जगह पर कोई भी फिल्म देखने, या फिर किसी मंदिर मैं , सुबह की एक लम्बी लेजी सैर भी करनि चाहिए अगर आप रोज़ नहीं जाते तो. कभी उही रेअद्य हो कर एक उनकाही स्वीट डिश खाने या किसी फमौस जगह की चाट खाने जो घर से थोड़ी दूर हो और जहा जाना आना बहोत कम होता हो. मंजिल वो चीज़ नहीं है जिसे हमे खोज ते हुवे जाना है मंजिल वो चीज़ है जहा हमे तस्सली मिल जाये अपने आप को महेसुस करने की . अपने आप मैं संतोष पाने की . अपने हर एक पल को जीने की . जहा जाओगे वही आप को अपनी मंजिल मिल जाएगी. फिर जिंदगी मै जीने के चार दिन हो, या दो दिन. हमे हर पल जीने का मजा आएगा. लोग कहेते है, "सारी जिंदगी गुजर गई मंजिल की तलाश मैं". पर उन्हें क्या पता है मंजिल तो अपने खुद के कदमो से जुडी है. हर कदम पर एक नई दुनिया है हर कदम पर एक नई मंजिल.

जहा भी कदम ले चले वही नई मंजिल हम बनायेंगे
जिंदगी मैं गम हो या ख़ुशी हम हर पल जीते ही चले जायेंगे....
यहाँ वहा ढूंढे क्या ?
जब खुद ही मैं है तेरी मंजिल को पाने का रास्ता

Sunday, September 11, 2011

टोय स्टोरी , खिलोने





टोय  स्टोरी , खिलोने

याद है हम बचपन मैं जिस चीज़ के साथ खेला करते थे? जो सब से ज्यादा हमे अज़ीज़ थे , दोस्त होना हो वो हमेशा हमारे साथ रहेते थे. जि हा सुख हो या दुःख हो हमारे सिने से लिपटकर हमारी ही बाते सुना करते थे. वो थे हमारे खिलोने. ये टोपिक पर लिखने की प्रेरणा मुझे टॉय स्टोरी फिल्म देख कर मिली. कभी मोका मिले तो  देख लेना. बहोत अछी फिल्म है अपने मालिक और अपने दोस्तों से लगाव के बारे मैं. वो जिन्दा होके बोलने लगते है . मुझे भी याद है की मैं भी एक छोटा सा कुत्ता और ही-मेंन को लेके बड़ा ही रोमांचक अनुभव ता था. वो मेरे अकेले पन के साथी थे. 
   आप भी अपने खिलोनो से बहोत ही नजदीक होंगे. वो गाड़ी चलाना, उनके साथ बैठ के खाना खाना ,  छोटी सी बातो पे उनसे रूठ जाना ,या उनको ही लेके बहार जाना. एक बार मेरे घर पर कुछ महेमान आये थे और उसमें मेरा एक कॉम्पिटिटर था. मतलब की मेरे जैसा छोटा बच्चा भी था. फिर क्या था मेरे खिलोनो के साथ उसने खेल ना  शुरू किया अईसे  से वैसे कैसे भी वो खेलता था . मैं चुप रहा कुछ  देर पर कब तक ? वही से अपने पन और पराये पन की समज आने लगी. अपनी चीजों को कोई छेड दे तो बुरा लगता है वो समज आगया. पर आज भी दुसरो की चीज़े इस्तमाल करने मैं वो ख्याल जरा कम आता है. हमेशा अपने खिलोनो को बाजु मैं लेके सोता था. मोम या पापा उसे रख देने को कहे तो भी रात को लाइट बंद करने के बाद उसे वापस अपने पास लेके आता और अपनी बाजु  मैं सुला देता था. पर सुबह हमेशा वो मुझसे पहेले उठा होता था और शो-केस  के एके कॉर्नर मैं बैठा रहेता  था . अगर सच कहे तो सबसे पहेला अपना कोई दोस्त बना तो वो था अपना खिलौना . ना बोलके  अपने साथ हमेशा रहेके अपनी चपड  चपड  सारी  बाते शांति से सुन ना और  हमेशा अपने हा मैं हा मिलाना . क्यों की उसकी मुंडी / गर्दन हम ही हिलाते थे . नेवर से नो टू  अस . जहा जहा मैं रहूँगा वहा वो होगा ही.
   जीवन के बड़े खूबसूरत मोड़ पर वो मिला था. हम लोगो को पहेचान रहे होते है ये काका ये मामा ये दीदी पर इस की पहेचान कोई देता नहीं था इसलिए हम ने उसे अपना बनाया एक दोस्त की तरह. वही से हमने जाना अंजान लो गो से कैसे दोस्ती  बढ़ाना और करना होता है . आज  कुछ  बच्चो को देखते है तो  उनके लिए खिलोने यानि मोबाइल फ़ोन और कंप्यूटर होगये है . क्या ये लोग वो बोन्डिंग बना पाएंगे जो हम लोगो ने बनाई थी. अपने खिलोने आज भी हमे याद करते है किसी कोने मैं आज भी वो खड़े है आज भी अगर आप उसकी और स्मिले दोगे तो वो जरुर अपनी और वही मुस्कान डालेंगे. एकाद खिलौना धुंड   कर देखिये शायद आपके आस पास मिल जाये. और वो डोल जिस के बाल बना के बिगाड़ के हम लोग खेलते थे. आज दुसरो बचो को देखते है तो हम भी उनेके साथ अपनी एक अलग ही स्टोरी चालू कर देते है . किसी बच्चे के लिए जो खिलौना करता है शायद उसका उपकार हम नहीं भूल सकते . खाली समय मैं उसके साथ करने वाली उसकी किलबिल बाते उसके इमोशन सिर्फ वही खिलौना जान सकता है.  माँ - पापा को या अपने आप को कभी दूर रहेना पड़ता है बचो से तो सब से पहेले वो बचो के हाथ मैं खिलौना थमा देते है बस खेलो उसके साथ . कोई बचचो को कई सारे खिलोने मिलते है तो कई को एक या दो पैर जो भी हो हमे बड़े आचे लगते थे . 

आज हम इतने बड़े होगये है की याद ही नहीं कभी हमारे जीवन के साथ ये जुड़े हुवे थे . और हमने उन्हें थैंक्स भी नहीं कहा आज तक . हो सके तो अपनी जिंदगी का खुच वक़्त उसके लिए निकाल के उसे कहे देना और किसी के घर अगर कोई बच्चा हो तो एक अपना खास  खिलौना खरीद के देदेना. 

Sunday, July 31, 2011

pratibimb ....mirror



प्रतिबिंब

एक अक्स दिखता है दूसरी और , अपना सा लगता है कभी सपना सा लगता है , कभी उसी पर प्यार आता है तो कभी गुस्सा आता है, कभी घंटो बिता देते है , कभी एक जलक देख कर निकल जाता है, बस हर वक़्त अपनापन जताता है, अपनी ही जालक दिखा ता है वो.............वो है प्रतिबिंब....
दर्पण की भी अजीब दास्तान है हमारा चहेरा ,रंग, रूप खूप पहेचानता है. जो हम करे वो करता है. मुस्कुराए हम तो वो मुस्कुराता है. रो दे तो वो भी रो देता है. हमे अपनी ही हक़ीकत से मिला देता है...अक्सर कहेते है ना के तस्वीरे जुठ बोल सकती है पर आईना नही. आईना तो हमारी असली पहेचान है. हम जो है वही दिखा ता है. लड़कियो के लिए तो उनकी खूबसूरती का दूसरा नाम है. अगर किसी लड़की को मस्त सताना हो तो उसे साडी , चूड़िया , साज शिंगार की सारी चीज़े दे दो और फिर उसे बिना आईनेवाले एक कमरे मे छोड़ दो......बस फिर क्या है ...
दर्पण मैं जाकना हर किसी को अछा लगता है . अपना प्रतिबींब कैसा लगता है सब को उसकी उत्सुकता होती है. फिर वो काला हो या गोरा, छोटा हो या मोटा, लंबा हो या बौना. रेफलेक्शन देखने के लिए बस एक काच की दीवार ही काफ़ी है. अरे कई बार तो लोग गाड़ी के दरवाजे के शीशो मैं ही अपने आपको देख कर सवार लेते है. आईना मैं देख अपने आप को सवारना काफ़ी पुरानी प्रथा है. और लड़कियो से उनका नाता काफ़ी पूराना है. जबही किसी खूबसूरती की बात हो और उन्हे दिलकी बात कहेनी हो तो बस, आईने के सामने लेजाके कहे दो, दुनिया मैं इस से हंसिन लड़की मैने नही देखी . शर्मा ना तो पका है पर आपकी बाहो मैं उनका सिमट जाना और भी अछा लगेगा जब आप खुद भी देख सकोगे आईने मे की सिर्फ़ कहेने के लिए नही काहेते लोग "दो जिस्म एक जान है हम". किसी को तिरछी नज़रो से देखने के लिए भी ये काम आता है. तो किसी के दूर रहेके भी पास रहेने का ज़रिया बन जाता है. भीड़ मे भी आपकी नज़रे बनके उनके ज़रिए दूसरो का दीदार करा देता है. जब बाते ख़तम हो जाई तो इशारो के लिए ज़रिया बन जाता है. तुम जो कहोगे वो तुमसे वही कहेता है. जबही खामोश रहोगे वो भी खामोश रहेता है. अपनी तस्वीर अपने को ही बता ता है हम क्या है वो हुमि को सिखाता है. जल की तरह पवित्र है वो. आग की तरह ज्वलनशील है वो. पहाड़ की तरह सख़्त है वो. ज़मीन की तरह निर्मल है वो. जो भी है वो बहोत सरल और सीधा है वो. हुमारी दूसरी पहेचान है वो. अपना ही अक्स दिखत आपना प्रतिबिंब है वो.


जबही मुजे वक़्त मिलता है
मैं आईने के सामने जाता हू
अक्सर उस्से बाते करता हू
और खूब मुस्कुराता इतरता हू .
अपने ही आप से रोज मिल आता हू
जिसे मैं अपनी परछाई मानता हू
अपनी ही नज़रो से उसकी नज़रे उतार ता हू.
दिन मैं लोगो से कम प्रतिबिंब से जादा मिल आता हू.

मे और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है दर्पण से.....
जिगर पंड्या.........
the mirror boy.  

Sunday, June 12, 2011

monsoon , मौसम



मौसम

एक बूँद गिरी मेरे बदन पर. तो लगा शायद बिल्डिंग के नीचे खड़ा हू तो किसी ने पानी डाला होगा. या फिर पेड़ पोधो को डालने वाला पानी गिरा होगा. पर उपर देख ही लेना चाहिए कुछ भरोसा नही है लोगो का कभी कभी मूह से भी पिचकारी उड़ाते है. पर नही वाहा कोई नही था थोड़ा आगे गया तो फिर से कुछ बूँद गिरी.  हा ये और कुछ नही बारिश की बूँदे थी.....मौसम बदल रहा है . तपती गर्मी से छुटकारा दिलाने आगाई है वर्षा रानी.
बादलो ने जैसे अपनी जगा बना ली और पहाड़ो से कहे दिया, दोस्त हम आगाय है प्यार का संदेशा लेकर धरती के लिए. "रिम जिम रिम जिम बारिश शुरू होगई माने या न माने मेरी तू हो गई ". ये एक एसा रोमॅंटिक मौसम है जो दिलो के साथ जिस्मो को भी प्यार से भिगो देता है. हम ना चाहते हुवे भी प्यार मैं गिर ने के लिए मजबूर हो जाते है. हर कोई अछा लगने लगता है. कुछ भीगे कुछ मचले हुवे अरमान बाहर आते है. और जब किसी अपने के साथ एक ही छत के नीचे कुछ देर खड़ा रहेना पड़े तो फिर क्या बात है.....
कुछ याद आया पहेली बारिश और वो समा. भीगे हम- भीगे तुम और ये भीगा रास्ता. कुछ पानी के सर्कल बन जाते है रास्ते पर जिसमे देखो तो वो दर्पण की तरह अपना चहेरा दिखाते है. कभी उस्मै अपने पाटनर को देख ईशारा किया है? करना... मज़ा आएगा..मन की बात धरती के आँचल से उनके आँचल से ढके दिल तक कुछ इस कदर पहोचेगी की शायद मीठी सी एक कॉर्नर वाली हसी मिलजाये. बस फिर क्या दिन बन जाए. पानी की बूंदे तो उनके जिस्मा को छू ही रही थी
अब तुम भी उनके दिल को छू लो तो बात संभल जाए. छोटी छोटी खुशिया ढूंड लेना जिंदगी है. वो ठंडी से कापना. उसमे एक ही बार अगर उनका स्पर्श हो गया तो फिर 240 का करंट लगना तो गेर्रेँटेड है. बारिश ने अगर साथ दिया तो ज़रा ज़ोर से गिरे, बस फिर एक ही शेड मैं किसी दुकान मैं साथ मैं खड़ा रहेने का मज़ा ही कुछ और है. बस फिर भीड़ बढ़ती जाए और आपकी दूरिया क़म होती जाए. एक चुस्की चाई की हो और एक ही प्लॅट मैं खाने वाले पकोडे 5 ही हो तो मज़ा आजए. 
वो 2 खाए, हम 2 खाए और अंजाने मैं 5 वे के लिए साथ मैं ही हाथो का स्पर्श फिर से होज़ाये. "उउइई मा"  तुम खा लो कहेके , दो नो का फिर से पकोड़ा रहे जाए. कोई बात नही आधा आधा खाने मैं मज़ा ही कुछ और है. sharing is the best destiny to wins others heart. ohh what a art ........
ना जाने ये आधा पकोड़ा तुम्हारी बाकी बची आधी जिंदगी को शेर करनेके लिए कोई हमसफर दे दे. बारिश मैं अक्सर लोग रोमॅंटिक हो जाते है, लड़किया हो या लड़के हर एक का देखने का नज़रिया बदल जाता है. रिम जिम बरसात मैं साथ मैं चलते चलते थोड़ा सा पानी भी उड़ा लेना चाहिए . भले बारिश का पानी तो जिस्म पे गिरता हो पर ये कुछ खास बूंदे , जो उनके हाथो को छू कर आई है उस मैं मज़ा ही कुछ और है. पब्लिक मैं प्यारी सी पप्पी तो नही दे सकते , तो आपके गालो
तक हुमारी और से ये पानी ही सही. बस छू ले तो लगे हमने आपको छू लिया. और फिर एक छोटी सी आँखो के इशारे के बाद मिलने वाली उनकी एक कॉर्नर वाली हसी........

ये लड़की या आधी हसी क्यू देती है पता नही? शायद हसी तो फसि का फ़ॉर्मूला याद है तो पूरी स्माइल देना नामुमकिन होजता होगा. खेर हम को तो महेंनत करते रहेनी है. बालो से टपकती हुवी बूँदे , कुछ गीले कुछ सुके हुवे कपड़े और बातो बातो मैं मंज़िल का ख़तम हो जाना. कितना जल्द मौसम भागता हे . यहा से अलग होना
है, तुम अपने रास्ते हम अपने रास्ते. टाटा कहेने का वो वक़्त थम ता ही नही. किसी को आँखो मैं बसा ना है पर ये बूँदे हर दम आँखे बंद करवा देती है. हाथ मिला ये तो कैसे ? अभी अभी शोक से उभर कर होश मैं आए है. फिर भी जब तक वो अपनी आँखो के सामने से दूर ना जा चुके तब तक "बाई" कहेते  रहेना अच्छा4 लगता है. फिर उनकी यादो मे खो जाना.
 वही जाना पहेचना सा रास्ता और वही 1 घंटे की स्टरगल फिर भी उस दिन पता ही नही चलता कब घर पहुच गये . ये मौसम अजीब है .........सबकुछ भुला देता है....

happy monsoon

Tuesday, May 17, 2011

GOD - great organizer and destroyer



भगवान
एक मज़ा देखा है आपने बड़े मंदिरो मैं हमेशा क़Q रहेगा..अरे अब भगवान को मिलने के लिए भी लाइन लगानी पड़ती है. जैसे दरदी बिना आपॉइंटमेंट डॉक्टर को नही मिल सकते वैसे जिंदगी के दर्दीओ को लाइन लगानी पड़ती है. डॉक्टर एक बीमार अनेक. वहा भी पैसे लेते है ओर यहा पैसे चढ़ते है..संभाल लेना भगवान थोड़ा टेन्षन चालू है. उन्हे खुश करने के लिए फूल भी चढ़ाते है  विथ मिठाई. इतना गर्लफ्रेंड के लिए करेंगे तो कम से कम वो दिन प्रसाद ज़रूर मिल जाएगा ( टर्म्ज़ ओर
 कंडीशन: प्रसाद की मात्रा ज़्यादा और कम हो सकती है डिपेंड ऑन फूल  ओर मिठाई). मुजे नही पता उनका मॅनेज्मेंट कैसे होता होगा, यहा अपने फॅमिली के चार लोगो को संभाल ना मुश्किल है- वो करोड़ो लोगो को संभलता है. मज़ा कब आती है पता है, जॅब आप भगवान के पास इतने लंबे समय के इंतज़ार के बाद पहोच्ते हो , काफ़ी धक्के और लोगो की गुस्से भरी निगाहो से बचकर. उसी वक़्त मोटा पतला पुजारी कहे गा "जल्दी आगे भागो" अरे तेरी तो...मैने अभी माँगा कहा है? आधा घंटा लाइन मैं खड़ा रहा कम से कम आधा सेकेंड  तो देदो. अपने ही हाथ से बास्केट या फूल छीन के भगवान के कदमो मैं एसे लगाएँगे और फैक देंगे, जैसे मैने उन्हे कचरा फैक्ने को कहा था. "चलो चलो जल्दी करो" , भगवान को जैसे टाइम नही है ये उन पुजारी को भगवान ने खुद कान मैं कहा हो. मूज़े कभी कभी लगता है की इतनी भीड़ क्यू होती है मंदिरो  मे? सो अब पता चला की एक बार मैं पता ही नही चलता के भगवान दिखते कैसे है? कभी हाथ तो कभी पाउ, तो कभी सिर्फ़ फेस दिखता है. अब पूरे भगवान को देखना है तो इनस्ट्लमंट मैं आना पड़ेगा, तब जाके पूरे दिखेंगे . हर मंदिर मैं इतने लोग होते है की पता ही नही चलता भगवान किधर बसे है? जबही दूर से देखो दो तीन पुजारी का सर दिखेगा और गणपति से भी जाड़ा बड़ा पेट..लगता है लड्डू गणपति के बदले यही जाते है. कुछ मंदिरो मैं गणपति के चूहे के कान मैं कई लोगो को बोलते देखा है. दो महीने बाद मैं वाहा फिर से गया था तो देखा वाहा ग्रिल लगा दी गई थी. मैने देखा तो वाहा दूसरी चूहे की मूर्ति थी. एक कॉर्नर पे देखा तो पहेले वाली के आधे कान गायब हो चुके थे. ओह माई गॉड. इतनी रिक्वेस्ट आती थी ? शायद इसी लिए हमे भगवान के मूर्ति के बदले वाहा नीचे पदुकाए छूने को अलग से मिलती है. वरना हर महीने भगवान कैसे बदलेंगे?


हमारे भगवान जो सिर्फ़ सुन सकते है कुछ बोलते नही इसी लिए शायद हमे इतने अच्छे लगते है. सिवाय फ़िल्मो के आपने कभी प्रॅक्टिकल लाइफ मैं किसी को ज़ोर से बाते करते सुना है भगवान के साथ? नही ना. क्यू की मैं भी हू तेरे दर पर मूज़े भी सुन ले प्रभु. . यही सब की मान की इच्छा होती है क्यू की बाहर की जिंदगी मैं तो कोई भी अपनी सुनता नही फिर वो ऑफीस वाले हो या अपनी खुद के फॅमिली के लोग. लड़कियो की बात ना सुन ना तो यहा क्राइम माना जाता है. कभी कभी मूज़े लगता है लड़कियो के लिए हर लड़का  हर दिन भगवान ही बना रहेता होगा. सिर्फ़ सुनो कुछ ना कहो. हा पर भगवान की तरह अगर उनकी ईच्छाए पूरी नही की तो फिर लड़को का असली भगवान के पास जाने का अपोईंटमेंट पक्का है...
   खेर भगवान को अपना काम करने दो और हमे अपना. बस भगवान से यही गुज़ारिश है की जहा भी रहे मेरे साथ रहे ताकि मुज़मे हिम्मत बरकरार रहे दुनिया और दुनियादारी से लड़ने के लिए.

god bless me ,you and our problems



Tuesday, May 10, 2011

ekant



एकांत
अकेले बैठे सुना है कभी खामोशी को? मन जब शांत होता है, अपनी सारी और देखलो फिर भी कोई नज़र नही आता, बस मैं
 और सिर्फ़ मैं.......... एकांत मैं रहेना और खुद से बाते करने मे एक अलग मज़ा है. अपने आप के लिए कुछ देर वक़्त निकालना. अपने आप के ही कई पुराने नये कारनामे या अफ़साने याद करना और मन ही मन मे मुस्कुराना. खुली निगाहो से अपने ही सपनो मे खोजाना.  ना चाहते हुवे भी अपनी तन्हाई यो से प्यार करना. बिना कोई फोकस के बैठे रहेना और एक ही दिशा मे देखते रहेना. मन मे स्पाइडरमॅन की तरह, तरह-तरह की बातो के जाल बुनना ,फिर उन्मने ही उलज जाना...कभी कभी तो मीठी सी नींद मैं खोजना.....
अक्सर एकांत रात को जादा महेसुस होता है, जब हम सोने जाते है तब. अपनी ही छत को देखते हुवे कुछ देर सोच भी लिया करो, शायद उसी सफेद छत पे आपके ख़यालो की तस्वीर नज़र आजाए. हम जाके सीधे सो जाते है, या बुक्स लेके पढ़ते पढ़ते फुसस्स्स हो जाते है. कपल बाते करके सो जाते है और बड़े लोग भगवान का नाम लेते सो जाते है. खेर सोना तो चाहिए ही पर तोड़ा वक़्त निकाल ने के बाद. कभी कही बाहर गये हो तो कुछ देर आसमान को या नेचर को देख ते रहेने मैं भी मज़ा आता है. एकांत का सीधा जोड़ अपने दिलो दिमाग़ के साथ होता है. जबही आता है हमेशा मन को निर्मल शांत कर देता है. नया जोश नयी उमंगे नयी तरंगे वही से जाग उठती है. कभी मंदिर मैं जाके सोचा है, हम वहा सब से जादा सुकून क्यू मिलता है ? क्यू की वाहा सबसे जादा शांति होती है, एकांत .......वो भगवान खामोश रहेके अपनी खामोशी को सुन लेते है. हम मन मैं कुछ कहते है उनसे और चले जाते है ये मान के की अपनी मुसीबतो का बेड़ा पार होगया. पेर देर असल हम वाहा पॉज़िटिव एनर्जी लेने जाते है , जो हमे वाहा के शांत महॉल से मिलती है. जिस से हमारे विचारो को नई प्रेरणा मिलती है. मंदिर मे कोई भी शोर नही होता सिवाय एक घंट नाद के "टन" "टन" . एकांत को चिर के अपने ख़यालो से अपने भगवान को परिचय दिलाता. सुकून वही मिलता है जहा हमे  अछा लगता है फिर वो प्रेमिका की बहो मैं खामोशी से सोजाना   हो या फिर  तकिये को सिने से ज़ोर से लिपट के अपने ख़यालो मे खो जाना हो....जहा जहा एकांत मिले वही से नया सवेरा मिले, सो अपने अंदर के एकांत को ढुंढ़ो और खोजाओ अपनी नई दुनिया मे.

जिगर पंड्या