Sunday, September 12, 2010

बारिश..........

रिम ज़िम रिम ज़िम कुछ बूंदे गिरी मेरे तन पर एहेसास हुवा किसी ने चुपके से  छू लिया......आसमान की और देखा गौर से तो कुछ बूँदो ने गालो को भी चूम लिया|  ....ये मिट्टी की खुश्बू जहेन मैं एसे उतर गई जैसे बरसो से तरस रही थी मिलने को. कभी दोनो हाथ फैला के आस्मा से बाते करते बारिश का मज़ा लिया है? ले लेना .चिप चिप कपड़ो मैं भी जीने का अलग मज़ा है| किसी को देखना और किसी की नज़रो का शिकार भी होने मैं एक अलग मज़ा है...सारा मौसम रोमॅंटिक लगता है| गरमा गरम वो भजी की खुश्बू , गीले गीले से बदन मैं जाती वो चाय की गरमा गरम चुस्की...होठ को छूते ही सिसकिया निकल जाती है|.......हर तरफ पानी के छोटे छोटे सर्कल जमा होजते है ..जैसे के आईना हर कदम पर तुम्हारे लिए बिछा दिया हो आस्मा ने. आज धरती पर पानी को  छूना मतलब आस्मा को  छूने जैसा लगता है| कभी कभी बच्चो को देखते है पानी उड़ाते तो क्यू ना हम  कुछ पल के लिए बच्चे बन के इसका मज़ा ले।
 याद हे , छोटी काग़ज़ की कश्ती बना के पानी मैं छोड़ा करते थे...आज खुद एक जहाज़ बन गये है और दुनिया के समंदर मैं नज़ाने कहा तक जाचुके है....वापस आना तो दूर कहा से जहाज़ शुरू किया था वो भी पता नही है. लोग मिलते गये मंज़िले बदलती रही..कुछ इस कदम से कदम मिलाक  चले तो कूछ अपने रास्ते अलग से चले गये...पर हर कोई कुछ ना कुछ सिखाता गया| बहोत कम वक़्त दे पाते है हम अपने लोगो को क्यू की लोग भी बढ़ गये है उमर के साथ साथ. पहेले था बस एक दोस्त अब अनेक दोस्त बन गये है| सो हो सके तो उतना नही पर थोड़ा वक़्त निकालो अपने खोए हुवे दोस्त को मिलनेके लिए, जिस तरह हर साल बारिश आती है अपने धरती के दोस्तो को मिलने.

सो अब हम भी बारिश की तरह एक बार ज़रूर मिलेंगे.......
क्यू ना रहे हम अलग अलग ,
पर दिल तो हमारा एक ही है,
पुकार लेना जहा चाहो हमे
यहा नही वाहा नही उसी मोड़ पर मिलेंगे
जहा से जुदा हुवे थे कभी......




जिगर

1 comments:

good jigar,
अप्रतिम !!! ऐसे हि लिखते रहना.

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