Sunday, October 17, 2010

बस ......

बस .............घुर्र्ररर
या कहे बस..........स्टॉप
हा हा ...या चलो कहेते है बस स्टॉप , जहा से रोज कई जिंदगिया यहा से वाहा सफ़र करती है| मानो जिंदगी घर से बाहर वही से शुरू होती है| वक़्त किसी के लिए रुकता नही और हम कभी भी वक़्त से पहेले कही पहुचते नही, ये जिंदगी है हर एक आम इंसान की| बस से शुरू होती है और वही बस पे ख्तंम होती है| इतनी भीड़ भाड़ मैं भी हम उसका साथ छोड़ते नही , क्यू छोड़े वही तो एक है जो कम दामोमे सही जगह पर पहुचाती है| कई क़िस्से है इस बस के| कभी टाइम से पहेले आजाती है तो कभी आती नही| एक बार इंतज़ार का मीटर लगा के देखोगे तो यारो माहेबूबा जल्दी आती है पर बस , बस... बस नही आती | आती है तो जगा नही होती, जगा मिल जाए तो, वो तेज नही दौड़ती, तेज हो जाए, तो सिग्नल नही छोड़ती ,सिग्नल छूट जाय तो स्टॉप पे नही रुकती | कभी कभी चालू बस को पकड़ ने के लिए इतनी दौड़ लगा नि पड़ती है की पूछो मत्त!! बस पकड़ ने के चक्कर मैं हम बस से भी तेज दौड़ जाते है...वो ड्राइवर बस का ब्रेक लगा ता है, पर हम इतने तेज होते हे की हमारा खुद का ब्रेक लगते लगते बस  का ड्राइवर तो क्या बस का नेमप्लॅट तक पढ़ सके उतने आगे निकल जाते है| जबकि चढ़ना पीछे से होता है| है भगवान अब ये वापस पीछे जाने तक रुकेगा की नही वो भी एक मुसीबत ही होती है| अछा है ऑफीस मैं पुराने जमाने की तरह धोती पहेंनके जाना नही पड़ता वरना इतनी भीड़ मैं किसी ने धोती पे पैर रख दिया तो अपनी तो स्वाहा...(ना कोई उपर नीचे ,ना कोई आगे पीछे ,बोलने वाला , ना कोई बोलने वाली, जानबे आली ..अपना क्या होगा...)| खेर अंदर का महॉल भी कुछ अजीब होता है| एक तो लोग सीढ़ी से उपेर चड़ते नही और जो चढ़ गये होते हे वो आगे बढ़ते नही| जैसे के कॅनडॉक्टर उन्हे पैसे देने वाला हो वैसे उसके आगे पीछे चिपक जाते है "अरे वाह मेरे बस मैं आने के लिए लॉजी सामने से पैसे लो"| उसमे कुछ हीरो लोग बस के दरवाजे पे ही खड़े रहेंगे "क्यू भाई , इतना ही शोख है तो फाइव स्टार होटल के दरवाजे पे खड़े रहो कम से कम थोड़ी बहोत आमदनी होज़ायगी"| खेर ये नही सुधरेंगे हमे हि अंदर आगे जाना होगा| फिर बेचारा ये दिल कुछ पल बैठने के लिए मचलेगा| पर वाहा पहेले से बैठे होंगे जो लोग वो इस नज़र से देखेंगे की बस मैने अगर जगा नही दी तो मेरी गोदी मैं ही बैठ जाएगा| सो नज़रे भी मिलाएँगे तो एईसे जैसे वही से दूर जाने का इशारा करते हो| वैसे अपने खड़े रहेनेका अंदाज भी अजीब होता है| कुछ इस तरह अपनी पोज़ीशन लेंगे की आधे से ज़्यादा शरीर बैठने वाले के उपर डाल देते है| खेर ज़िदगी है, हर किसी का अपना नज़रिया है| बस अपनी मंज़िल पे वो बस पहुचा दे वही बस है वरना यहा तो स्पाइडर मेन की तरह यहा से वाहा हाथो को मजबूत पकड़के लोगो की भीड़ से बचके आगे अपने शरीर को लेजना भी एक अलग ही अदा है| अगर आप सही वक़्त पे उठ कर आगे निकल गये तो ठीक वरना पता चला की आपका बस स्टॉप पीछे रहे गया है और आप दो स्टॉप आगे निकल आए हे| सो अगली बार ज़रा सम्भल के जाना इसकी मज़ा या सज़ा लेना आपके हाथो मे है| वरना कही कहेते ना रहे जाए बस अब तो बस करो स्टॉप मेन स्टॉप इट......

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